सारखी चकवा मला देऊन जाते
ही झळाळी नेमकी कोठून जाते ?
सहजतेने केवढ्या तोडून बसतो
जन्मभर मग सांधणे राहून जाते
लागते जेव्हा कळाया जगरहाटी
गोजिरी आख्यायिका संपून जाते
दाबले इच्छेस एका फार पूर्वी
आजही ती जोगवा मागून जाते
एरवी रेंगाळलो असतो किनारी
लाट काळाची मला ढकलून जाते
- विश्वजीत गुडधे
पेड़ पानी से ख़फ़ा लगता है (ग़ज़ल)
पेड़ पानी से ख़फ़ा लगता हैबाढ़ आई थी, पता लगता हैख़ाली जगहें यूँ न रखिए साहिबइश्तिहारों को बुरा लगता हैहाशिए जब से हुए हैं रौशनरंग-ए-तहज़ीब उड़ा लगता हैजब कि हाथों की थमी है सिहरनक्यों लरज़ता सा छुरा लगता है?क्या करे कोई भला इस दिल का?जो न लग कर भी लगा लगता हैबेबसी है या कि ये सद्मा है?जो गुज़रता है ख़ुदा लगता है- विश्वजीत
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