बस सवालों पर ज़रा सा कोहरा कर देख लो
इन इलाकों की नई रस्मे पता कर देख लो
रोज़ पैरों को पटकते लौट आता है जुनूँ
अब तलक से सब्र को भी हमनवा कर देख लो
सिसकियों, चीखों, गुहारों की तुम्हें आदत नहीं
हो सके तो रात का मलबा उठा कर देख लो
दरमियाँ जो था कभी वो याद में मिलता रहे
कौन कहता है कि फिर से सिलसिला कर देख लो
"मुद्दतों के बाद उस ही मोड़ पर हम आ मिले"
इस कहानी को हक़ीक़त से मिला कर देख ख लो
- विश्वजीत गुडधे
पेड़ पानी से ख़फ़ा लगता है (ग़ज़ल)
पेड़ पानी से ख़फ़ा लगता हैबाढ़ आई थी, पता लगता हैख़ाली जगहें यूँ न रखिए साहिबइश्तिहारों को बुरा लगता हैहाशिए जब से हुए हैं रौशनरंग-ए-तहज़ीब उड़ा लगता हैजब कि हाथों की थमी है सिहरनक्यों लरज़ता सा छुरा लगता है?क्या करे कोई भला इस दिल का?जो न लग कर भी लगा लगता हैबेबसी है या कि ये सद्मा है?जो गुज़रता है ख़ुदा लगता है- विश्वजीत
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