बस सवालों पर ज़रा सा कोहरा कर देख लो इन इलाकों की नई रस्मे पता कर देख लो रोज़ पैरों को पटकते लौट आता है जुनूँ अब तलक से सब्र को भी हमनवा कर देख लो सिसकियों, चीखों, गुहारों की तुम्हें आदत नहीं हो सके तो रात का मलबा उठा कर देख लो दरमियाँ जो था कभी वो याद में मिलता रहे कौन कहता है कि फिर से सिलसिला कर देख लो "मुद्दतों के बाद उस ही मोड़ पर हम आ मिले" इस कहानी को हक़ीक़त से मिला कर देख ख लो - विश्वजीत गुडधे
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